• August 31, 2023

वंशवाद का हंगामा क्यों है वरपा

वंशवाद का हंगामा क्यों है वरपा

लोग आश्चर्यचकित हैं कि इन सयानों को अचानक वंशीय शासन का भूत क्यों सताने लगा है जबकि पिछले 42 वर्षों से देश में कोई भी ऐसा नेता प्रधानमंत्री नहीं बना जिसकी जड़ें किसी वंश परम्परा में ढूंढी जा सकें। इस दौरान तो एक पूरी पीढ़ी बचपन से जवानी का दौर पूरा करते हुये बुढ़ापे में प्रवेश कर चुकी है और एक बिल्कुल नयी पीढ़ी मैदान में आ गयी हैं। सो इन पीढ़ियों को ऐसे किसी खतरे की सुध क्यों हो। लोकतंत्र में निश्चित अंतराल के बाद होने वाले चुनावों में सत्ता को जनता जनार्दन के सामने परीक्षा देनी पड़ती है जिसमें मुख्य रूप से उसका आकलन इस आधार पर होता है कि उसने बेरोजगारी, महंगाई, लोगों की आर्थिक बदहाली दूर करने और समाज में खुशगवार माहौल कायम करने के उद्देश्य को किस हद तक सफल किया। यह मौलिक मुद्दे अगले चुनाव के केन्द्र में भी हैं लेकिन इन पर डट कर जबाव देने की तैयारी करने की बजाय ऐसे मुद्दे प्लांट करने की कसरत की जा रही है जो स्वाभाविक तौर पर लोगों के चिंतन में हो ही नहीं सकते। इसमें सहायक बनकर मीडिया का एक वर्ग अपनी जगहसाई करा रहा है। जी हां बात हो रही है आज एक प्रमुख हिंदी दैनिक में पटना के एक पत्रकार के प्रकाशित आलेख की जो अपनी युवावस्था में बिहार की राजनीति के बारे में धारदार खबरें देने के लिये विख्यात थे लेकिन आज सत्ता प्रतिष्ठान के खबरची की भूमिका अदा करके संतोष का अनुभव कर रहे हैं।
राजनीति में वंश परम्परा के विरोध के मुख्य सूत्रधार डा. लोहिया रहे हैं लेकिन विडंबना देखिये कि उनके नाम की माला जपकर जिन्होंने राजनीति के भव सागर को मथ कर सत्ता का अमृत चखने में सफलता पायी वे अमल में वंशवाद के सबसे बड़े पुरोधा साबित हुये। डा. लोहिया ने जब इसका बीड़ा उठाया था तब उनके निशाने पर भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की पुत्री इन्दिरा गांधी थीं। वैसे इन्दिरा गांधी को जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री पद की कमान सौंपकर गये हों बात सो नहीं है। जवाहरलाल नेहरू के दिवंगत होने के बाद लाल बहादुर शास्त्री को प्रधानमंत्री चुना गया था जिनकी असमय रहस्यमयी परिस्थितियों में मौत हो गयी तो कांग्रेस पार्टी के सामने नये प्रधानमंत्री को चुनने की चुनौती आयी। इसके लिये तमाम दिग्गज आपस में भिड़े हुये थे और उन्होंने फिलहाल एक राय बनाने के लिये इन्दिरा गांधी को यह सोचकर प्रधानमंत्री की कुर्सी दिलवा दी कि वे उनकी कठपुतली साबित होगीं लेकिन इन्दिरा गांधी ने सत्ता पाते ही अपना रंग दिखाया तो वे ठगे से रह गये। उन्होंने इन्दिरा गांधी को हटाने की सोची। कांग्रेस इंडिकेट और सिंडीकेट नाम के दो भागों में बंट गयी। सारे दिग्गज एक तरफ हो गये और इन्दिरा गांधी एक तरफ। पर जीत इन्दिरा गांधी की हुयी वजह उनके पीछे उमड़ा जन समर्थन रहा। लोगों ने महसूस किया कि देश को आगे ले जाने की दूरदृष्टि और क्षमता जो इन्दिरा गांधी में है वह कांग्रेस के दूसरे दिग्गजों में नहीं है। इसलिये इन्दिरा गांधी ने जो पाया वह अपने पुरूषार्थ की बदौलत और जब 1977 में उन्होंने इसे गवांया तो अपनी ही करतूत की बदौलत। लोगों ने क्षमता देखकर उन्हें अपनी पलकों पर बैठाया था तो जब उन्होंने क्षमताओं का दुरूपयोग किया तब उन्हें सत्ता से उतार दिया। कहने का अर्थ यह है कि न तो वंशवाद जैसी किसी सीढ़ी के कारण ही वे प्रधानमंत्री बनी थीं और न ही जब उन्हें हटाने का निर्णय जनता जनार्दन ने लिया तो उनका वंशीय आभा मंडल उसमें रूकावट बन पाया। नेहरू को दार्शनिक और भावुक प्रधानमंत्री के तौर पर याद किया जाता है। इन आदतों के कारण वे कश्मीर और चीन के मामले में देश को हुये नुकसान के निमित्त बने लेकिन उनकी पुत्री होते हुये भी आयरन लेडी कही गयीं  इन्दिरा गांधी का प्रताप  अलग था। उन्होंने पाकिस्तान के दो टुकड़े करा दिये और देश की अलग तरह की धाक उस दौर में दुनिया के सामने कायम की जब संसाधनों में भारत बहुत पिछड़ा हुआ था। जहां तक राजीव गांधी की बात है तो जब इन्दिरा गांधी की हत्या हुयी तो वे सोवियत संघ में थे। इन्दिरा गांधी के सामने यह अवसर नहीं था कि वे उनका राज तिलक करके संसार से विदा लेतीं। सोवियत संघ से भारत वापस आने में राजीव गांधी को 9 घंटे लगे। इस बीच पूरा अवसर था कि कोई और प्रधानमंत्री बना दिया जाता पर कांग्रेसियों ने ऐसा नहीं किया उन्होंने इन्दिरा गांधी की मौत की औपचारिक घोषणा को रोके रखा ताकि राजीव गांधी प्रधानमंत्री पद की शपथ ले सकें। इसलिये कहा जा सकता है कि राजीव गांधी भी केवल वंश परम्परा के कारण प्रधानमंत्री नहीं बने। कुछ तो ऐसी विशेषता इन्दिरा गांधी ने अर्जित की ही थी कि कांग्रेस जनों ने उनके दुनिया में न रह जाने के बाद भी उनका उत्तराधिकारी उनके पुत्र को बनाना अनिवार्य समझा। इसके बाद राजीव गांधी के नेतृत्व में जो चुनाव हुआ उसमें लोगों ने कांग्रेस पार्टी के फैसले की अभूतपूर्व बहुमत से ताइद की। अगर वंशवादिता का इतना जोर होता तो 5 साल बाद ही राजीव गांधी के सत्ता से हटने की नौबत न आती पर वंशवाद का रोना रोने वाले यह भी देखें कि 1989 में राजीव गांधी को सत्ता गवानी पड़ गयी थी। उनकी राजसी पारिवारिक पृष्ठभूमि नवीं लोकसभा के चुनाव में किसी काम नहीं आयी। इस बीच लोगों ने विश्वनाथ प्रताप सिंह को देखा, चन्द्रशेखर को देखा जिन्हे बड़ा नाज था कि उनके शासनकाल के 4 महीने कांग्रेस के 40 वर्ष पर भारी पड़ जायेंगे लेकिन 1991 में किसी ने उन्हें बैंगन के भाव भी नहीं पूछा। उनके नाम पर किसी और सांसद का जीतना तो दूर अगर मुलायम सिंह ने बलिया के 5 नेताओं को मंत्री न बनाया होता तो वे खुद भी चुनाव हार जाते। जिस तरह 1977 के बाद 3 वर्ष में ही लोग इन्दिरा गांधी को दुबारा सत्ता में लाये थे उसी तरह राजीव गांधी को भी वे 1989 के बाद 1991 में फिर सत्ता में बैठा देते अगर राजीव गांधी जिंदा रहे होते। राजीव गांधी के बाद गांधी नेहरू परिवार का कोई नेता प्रधानमंत्री नहीं बना। नरसिंहा राव प्रधानमंत्री बने लेकिन उनके नेतृत्व में कांग्रेस का क्या हश्र हुआ यह बताने की जरूरत नहीं है। नरसिंहा राव के बाद कांग्रेस में नेहरू गांधी परिवार से बाहर के एक और नेता सीताराम केसरी को आजमाया गया लेकिन उन्हें भी लोगों की स्वीकृति नहीं मिली। जब सोनिया गांधी ने सक्रिय राजनीति में आने की मनुहार मंजूर कर ली तब कांग्रेस में नये प्राणों का संचार शुरू हुआ। 2004 में कांग्रेस के केन्द्र में सत्तारूढ़ होने का अवसर आया तो चेहरे के नाम पर निर्विवाद रूप से सोनिया गांधी सामने थी लेकिन विदेशी मूल के व्यक्ति को प्रधानमंत्री न बनने देने की हुंकार होने लगी तो सोनिया गांधी ने अपने कदम वापस खींच लिये। इसके बाद 2009 में फिर कांग्रेस सत्ता में रिपीट हुयी। अगर वंशवाद का सिक्का सोनिया को चलाना  होता तो राहुल गांधी का मनमोहन सिंह के स्थान पर आसानी से राज तिलक हो सकता था लेकिन उन्होंने यह तो नहीं किया न । राहुल गांधी आज विपक्ष में हैं और कुर्सी की मलाई खाने की बजाय सत्ता के दमन चक्र में पिसने के लिए अभिशप्त हो गए हैं । इसमें उन्हें कितनी सफलता मिल पाती है इसका अभी तो कोई ठिकाना नहीं है। अगर यह मान भी लिया जाये कि विपक्ष इस बार भाजपा को सत्ता से बाहर ठेल देगा तो स्थिति ऐसी नहीं कि कांग्रेस का अपनी दम पर बहुमत आ जाये। एक गठबंधन सरकार बनेगी जिसमें दूसरी पार्टियों के बहुत ही मजे हुये नेता हैं | यह कल्पना नहीं की जा सकती कि राहुल गांधी के सामने नत मस्तक होना उनकी नियति होगी | राहुल गांधी को उनका विश्वास जीतना पडेगा | अभी तो यही स्पष्ट नहीं है कि राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनने के उत्सुक हैं या भारतीय राजनीति में कोई बड़ी लकीर खींचने का अरमान पाले हुए हैं इसलिये यह विलाप औचित्यहीन है कि देश का बड़ा गर्क करने के लिए वंशीय शासन कायम होने जा रहा है। लेखक महोदय ने अपने लेख में यह साबित करने की चेष्टा की है कि वंशीय परम्परा के संवाहक सत्ताधीश अक्षम होते हैं लेकिन यह भी एकदम बेतुकी बात है। लेखक महोदय कुछ भी कहें लेकिन इन्दिरा गांधी अपने पिता जवाहरलाल नेहरू से कहीं अधिक सक्षम प्रधानमंत्री साबित हुयीं थी। राजीव गांधी भी कई मामलों में विशिष्ट रहे। संचार क्रान्ति के अलावा उन्होंने नगर निकायों और पंचायतों में आरक्षण की व्यवस्था करके सामाजिक उपनिवेश के दुर्ग की नींव को धस्काने का जो काम किया उसके क्रांतिकारी फलितार्थ को कम करके नहीं आंका जाना चाहिए |  यहां तक कि उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री का पद भले ही मुलायम सिंह के पुत्र के नाते मिला था  लेकिन आज उन्हें स्वतंत्र रूप से देखा जाता है, सरकार के विकल्प में वे सबसे मजबूत चेहरे के रूप में उत्तर प्रदेश में मान्य हैं। राजनीति में वंशीय उत्तराधिकार अभिशाप की तुलना में वरदान अधिक साबित हुआ है जिसके एक उदाहरण नवीन पटनायक हैं तभी तो वे इतने समय से उड़ीसा में अपना टापू राज चला रहे हैं | मेरिट के बिना वंश प्रतिष्ठा साबित होती है जिसके उदाहरण अपने समय के राजनीति के सबसे बड़े ब्राह्मण सूर्य कमलापति त्रिपाठी के वंशज और महा सूरमा पूर्व प्रधान मंत्री चन्द्र शेखर के वंशज है जो कोशिश करने के वाबजूद अपनी पहचान तक के लिए  मोहताज नजर आते हैं |   

Related post

New Mercedes-Benz CLA with Hybrid and Electric Powertrain Revealed

New Mercedes-Benz CLA with Hybrid and Electric Powertrain Revealed

Mercedes-Benz has officially unveiled the latest generation of the CLA, featuring a striking design overhaul and a range of electrified powertrains. The new model comes with both plug-in hybrid (PHEV)…
3a Nothing’s Phone Pro is the only budget phone worth buying in India

3a Nothing’s Phone Pro is the only budget phone worth buying in India

3a) Pro is no exception. Featuring a signature faux-transparent back panel adorned with customizable LED ‘Glyphs’, the device offers a unique aesthetic appeal. The aluminum mid-frame with matte sides not…
Searching for the Best Digital Marketer? Choose Digital Praveen

Searching for the Best Digital Marketer? Choose Digital Praveen

In today’s fast-paced digital era, having a strong online presence is essential for business success. If you’re searching for an expert digital marketer who can boost your brand visibility and…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *